The lower the burden, the higher you will be able to fly !!!
The
story is about a Mahatma and two of his disciples, there was a debate between
the two disciples, if we have come into the world then we have the right, it
should be our duty to earn on the best side, and after that gather all the
means of comfort for your family ……, you have got only one life, if you have
not brought the means of comfort in it, what have you done on the land….
He who
was the second disciple was talking about the joy of Fakiri, he was saying that
the joy which is in Fakiri is not in anything else. The debate broke out in
both of them, the matter reached Sant Ji and both of them told their Guruji that
you should decide that I am right that it is right.
Guruji
said… .. that I will not give the decision only, to give you a task, both of
you have to do that work and in the end you will understand yourself what is
right and what is wrong. The one who choice luxury was given an empty bag, and
the one on the other side who was taking care of the fakery was given a bag
full of food and drink, both of them did not understand what to do, their Guruji
said to walk 10 kilo meter from here, both of you have to go. This one which is
giving you empty bag….Whatever precious item you will find on the way, you will
feel that the object of work is to be put in this bag, and the one who was choice
the fakery was told that the food bag which you have is full of food and drink.
I give whatever you need, and reach both the floors.
He who
was like of luxury started walking, after going a little he got a gold it and
he immediately put it in the bag, went a little further, got another it, then
the third it, then the fourth it, doing his bag with it. He was filled and
became heavy as well, the other disciple who was told to distribute the food
items to the needy, his bag slowly emptied as soon as he got any person on the
way, seeing that he had to eat it. He needed to give it to him, and his bag
began to empty, his burden also started to reduce, for him the path started
becoming easier, on the other side he was increasing his burden in his bag …….
He found it difficult to walk and started to breathe and finally it became
difficult to walk one step and the condition was that he finally fell halfway
with that burden and could not reach the floor …… ..
There
is a little learning for us and all of you, we spend our whole life collecting
things, while the one we must focus time and attention on making the best there
is not only our focus, our health is our last breath. Till is going to support,
but many times we leave these things and we get settled in such a round,
collect the gold it and the same it till the end If it makes it difficult, then
notice that you have to focus your time and time with the burden to the floor,
or become normal by rest ………. .
बोझ
जितना कम होगा, उड़ाने उतनी ही ऊँची भर पाओगे
!!!
कहानी है एक संत
की और उनके दो
शिष्यों का, दोनों शिष्यों के बीच में
बहस छिडा हुआ था, अगर हम संसार में आये है तो हमें अधिकार है, यह
करना चाहिए हमारा कर्तव्य बनता है की हम अच्छी तरफ से कमाई करे, और उसके बाद अपने परिवार
के लिए सुख सुविधा के सारे साधन जुटाए……, एक ही तो जीवन मिला है इसमें सुख सुविधा का
साधन अगर न लाये तो क्या किया धरती पर आ कर… ।
वही जो दुसरा शिष्य
था वह फ़कीरी के
आनन्द की बात कर
रहा था, वह कह रहा
था जो आनन्द फ़कीरी
में है वह किसी और चीज में नहीं है. दोनों में बहस छिड़ गया, बात संत जी तक पहुँच गया
और दोनों ने अपने गुरु संत से कहा की आप इस पर फैसला दीजिए कि मैं सही कह रहा हु की
ये सही कह रहा है ।
गुरूजी ने कहा….. कि
फैसला मैं यु ही नहीं
दूंगा, एक कार्य देता
हु करने के लिए तुम
दोनों को, वह काम करना है और उसके अंत में तुम्हे खुद ही समझ में आ जायेगा
की क्या सही है और क्या गलत है । जो विलासिता के तरफदारी कर रहा था उसे खाली थैला दिया
गया, और वही दूसरी तरफ जो फ़कीरी का तरफ़दारी कर रहा था उसे खाने पीने की सामग्री से
भरा हुआ थैला दिया गया, दोनों को समझ में नहीं आया की क्या करना है, उनके गुरु जी ने
कहा यहाँ से 10 कोस दूर तक चल कर तुम दोनों को जाना है । ये जो तुम्हे मै खाली झोला
दे रहा हु…. रास्ते में जो तुम्हे मिलने वाली कोई भी कीमती वस्तु होगी, तुम्हे लगेगा
काम की वस्तु है वह इस झोले में डालते जाना, और
जो फकीरी का तरफदारी कर रहा था उसे कहा गया कि तुम्हारे पास जो खाने पीने की
सामग्रियो से भरा झोला है, रास्ते मै जो भी जरुरतमंद दिखे उसे देते जाना, और अपनी मंजिल
तक दोनों पहुँचो ।
जो विलासिता का
शौकीन था उसने चलना
शुरू किया, थोड़ा आगे चलकर उसे सोने का इट मिला
और उसने फटाफट वह झोले में डाल लिया, थोड़ा और आगे चलता गया एक और इट मिला फिर तीसरी इट, फिर चौथी इट ऐसे
करते करते उसका थैला इट से ही भर गया और साथ में भारी भी हो गया, वही दुसरा शिष्य जिसे
कहा था खाने पीने का सामग्री जरुरतमंदो में बाटते जाना, उसका थैला धीरे धीरे खाली होता
गया जैसे ही उसे रास्ते में कोई ब्यक्ति मिलता जिसको देख कर लगा इसे खाने पीने की सामग्री
की जरुरत है उसे वह दे देता, और उसका थैला खाली होने लगा, उसका बोझ भी कम होने लगा
उसके लिए राह आसान होने लगा चलना आसान होने लगा, वही दूसरी तरफ जो अपने झोले में अपने
बोझ बढ़ा रहा था……. उन्हें चलना मुश्किल हो गया साँस चढ़ने लगा और अंतत एक एक कदम चलना
मुश्किल हो गया और आलम यह था कि आखिरकार वह उस बोझ के साथ आधे रास्ते में ही गिर गया
और मंजिल नहीं पहुंच पाया…….. ।
एक छोटी सी
सीख है हमारे और
आप सबके लिए, सारा जीवन हम चीजों को
इकठा करने में बिता देते है, जबकि जिसे बेहतरीन बनाने
पर हमें समय और ध्यान केंद्रित करना चाहिए वहाँ हमारा ध्यान केंद्रित ही नही होता,
हमारा स्वस्थ्य है जो हमारा आखरी सांस तक साथ देने वाला है, लेकिन कई बार इन चीजों
को छोड़ कर हम एक ऐसे भाग दौर में ब्यस्त हो जाते है, सोने की इट इकठा करने लगते है
और वही इट हमें अंत में हमारा चलना तक मुश्किल कर देता है, तो गौर कीजिये की आपको आपका
ध्यान और समय कहा लगाना है मंजिल तक बोझ के साथ, या आराम से सामान्य होकर ………. ।
Good one
ReplyDeleteFabulous
ReplyDeleteNice story
ReplyDelete