Sometimes even think about the other !!!
Once a king went for a walk with his son i.e. the crown prince of that kingdom, used to walk in his kingdom daily like this, he saw that a poor Brahmin was begging, prince had pity on that Brahmin, his circumstances. Knowing that he gave the bag full of gold currency to the poor Brahmin, the Brahmin was thankful and thanked him, was very happy going towards his house of his golden future. Dreams in eyes…. Now everything will be alright…. There will be no problem. But his misfortune was with him, a robbery came and robbed the bag with his hand, the poor crying Brahmin was forced to beg the market again the next day, when king came back for a walk with prince …. When the crown prince again begged him, he said to him, yesterday only I gave you a bag full of gold currency Bramhan told the whole story of how a bag full of gold currency was looted.
Prince again
took pity on that Brahmin and this time he gave him a more valuable ruby, very
happy that Brahmin, went to his house and in his heart he said that I will
handle it very much, the old pot which was in the house. …. The one who did not
use, kept it hidden, but see the fate of his wife, who came out with a pot to
get water in the river, on the way he broke the pot, came back home and The ruby
pot he picked up and walked towards the river, as soon as he poured the pot in
the river's water, it flowed into the river ruby, he was forced to beg again in
the same market again the next day, cursing his fate.
On the third
day, the king and the prince saw him again and this time when the prince heard
his story, he was very desperate, he did not understand what to do for the
Brahmin, then king said that when the right time comes, then all of it with
itself. It will start to get better, and king puts only two paise in the hand
of that Brahmin. That Brahmin took the money and was thinking in his mind that
why did king give me such a paltry donation?
He was thinking
that in this way he saw the fishermen holding a fish, who are yearning for the
fish to go into the water. That Brahmin took pity on the fish, looked at two
pennies in his hand and thought that I could not even fill my stomach for a
while, it would save someone's life better ……, fish from fisherman He made a
deal and put the fish in his ewer and went to put the fish in the river, and at
the same time something came out of the fish's mouth …… know what it was?
The same
precious rubbish came out of the fish's mouth, which was swept away in the
river, he got very happy and started shouting loudly…. Got it, and suddenly the
robber was also going through there who ran away from him carrying a bag full
of gold currency, he thought that after seeing me he is saying he has got it
and will just complain to king, the robber came And started adding legs and
feet… apologizing that bag full of gold currency He also returned it,
everything started getting better in his life.
After knowing
this, king explained to prince when you gave him gold Asharfi and rubies, then
he was thinking only about himself, but when I gave him two pennies, he was not
about himself but about saving the life of that fish. I was thinking when you
think of others, you do the work of God, and when you are doing God, then all
his powers are with you…. Time is with you and luck is with you, so be
absolutely selfless and think about the other …….
कभी
दूसरे
के
बारे
में
भी
सोच
कर
देखिये
!!!
एक बार एक
राजा अपने बेटा यानि उस राज्य के
युवराज के साथ टहलने
निकले थे, प्रतिदिन अपने राज्य में इस तरह टहलने
निकला करते थे, उन्होंने देखा की एक गरीब ब्राम्हण भीख मांग रहा था,
युवराज को उस ब्राम्हण पर दया आ गया, उसके हालात जानकर उन्होने सोने की मुद्राओं से
भरा हुआ थैला उस गरीब ब्राम्हण को दे दिया, ब्राम्हण कृतज्ञ हुआ और धन्यवाद् बोला,
बहुत खुश हो कर अपने घर के तरफ जा रहा था अपने सुनहरे भविष्य के सपने आँखों में लिए….
की अब सब कुछ ठीक हो जायेगा…. कोई दिक्कत नहीं रहेगी । लेकिन उसका दुर्भाग्य उसके साथ
था, एक लुटेरा आया उसके हाथ से भड़ी हुई थैली लूट कर ले गया, बेचारा रोता हुआ ब्राम्हण
अगले दिन फिर बाजार में भीख मांगने के लिए मजबूर था, जब राजाजी युवराज के साथ वापस
टहलने वहाँ आये…. युवराज ने फिर से उसे भीख मांगते हुए देखा तो उससे कहा, कल ही तो
मैंने तुम्हे स्वर्ण मुद्राए से भरा हुआ थैला दिया था, ब्राम्हण ने पूरी कहानी बताया
कि किस तरह स्वर्ण मुद्राए से भरा हुआ थैला लूट ले गया ।
युवराज को फिर से
उस ब्राम्हण पर दया आ गया और
इस बार उन्होंने और भी मूल्यवान
एक मणिक उसको दिया, बहुत खुश हुआ वह ब्राम्हण, अपने
घर गया और मन ही
मन उसने कहा इसको मै बहुत सम्हाल
कर रखूँगा, पुराने जो घड़ा था
घर का…. जिसे कोई इस्तेमाल नहीं करता था उसमे छुपा
कर रख दिया, लेकिन
भाग्य की बात देखिये
उसके पत्नी जो नदी में
पानी लेने के लिए मटका
लेकर निकली थी, रास्ते में वह मटका फूट
गया, वापस घर आई और
माणिक वाला मटका उसने उठाया और नदी की ओर
चल दी, जैसे ही मटके को नदी के पानी में डाला वह मणिक नदी में बह गया, वह अपने भाग्य
को कोसते हुए अगले दिन फिर से उसी बाजार में भीख मांगने को फिर मजबूर था ।
तीसरे दिन फिर राजा और युवराज ने
उसे देखा और इस बार जब
युवराज ने उसके कहानी
सुना तो बहुत हताश
हुए, उन्हें समझ नहीं आया कि क्या करें
उस ब्राम्हण के लिए, तब राजाजी ने
कहा जब इसका सही
समय आएगा तब इसके साथ
अपने आप सब अच्छा
होने लगेगा, और यह कहते
हुए राजाजी ने उस ब्राम्हण
के हाथ में मात्र दो पैसे रख
दिया । उस ब्राह्मण ने तो पैसे ले लिया और मन ही मन सोच रहा था कि राजाजी ने मुझे इतना
तुच्छ दान क्यों दिया?
वह ऐसा सोच ही रहा था कि इतने में उसने
देखा मछुवारे एक मछली पकड़ रखी है, जो मछली पानी में जाने के लिए तड़प रहा है । उस ब्राम्हण
को मछली पर दया आ गया, अपने हाथ में दो पैसे को देखा और सोचा इससे तो मै अपना एक समय
का पेट भी नहीं भर सकता, इससे अच्छा किसी का जान ही बचा लू……, मछुवारे से मछली का सौदा
कर लिया और अपने कमंडल में मछली को डाला और नदी में मछली को डालने के लिए चल पड़ा, और
उसी समय मछली के मुँह से कुछ निकला…… जानते है वह क्या था ?
मछली के मुँह से
वही कीमती मणिक निकला जो नदी में
बह गया था, वह बहुत खुश
हो कर जोर जोर
से चिल्लाने लगा मिल गया …. मिल गया, और अचानक वह
लुटेरा भी वहा से गुजर रहा था जो उससे स्वर्ण मुद्राए से भरा हुआ थैला ले कर भाग गया
था, उसे लगा की मुझे देखकर कह रहा है मिल गया मिल गया और अभी मेरा शिकायत राजाजी से
कर देगा, लुटेरा आया और हाथ पैर जोड़ने लगा… माफ़ी मांगते हुए वह स्वर्ण मुद्राए से भरा
हुआ थैला भी उसे लौटा दिया, उसके जीवन में अपने आप सब अच्छा होने लगा ।
इस बात को
जानने के बाद राजाजी
ने युवराज को समझाया जब
तुमने सोने के अशर्फियाँ और
मणिक दिया था तब वह
सिर्फ अपने बारे में सोच रहा था, लेकिन जब मैंने उसे दो पैसे दिए तब उसनेअपने बारे में नहीं बल्कि
उस मछली की जिंदगी बचाने के बारे में सोच रहा था । जब आप दूसरे के
बारे में सोचते है तब आप
ईश्वर का काम करते
है, और जब आप
ईश्वर का कर रहे
होते है तो उसके
सारी शक्तियाँ आपके साथ होते है…. समय आप के साथ होता है और भाग्य आपके
साथ होता है, तो बिल्कुल निःस्वार्थ हो कर दूसरे के बारे में सोच कर देखिये…….
Nice👍👍
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